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कुछ दशक पहले तक ऐक्टिंग से लेकर स्पोर्ट्स तक को ऐसे शौक के तौर पर देखा जाता था जिससे घर नहीं चलाया जा सकता।
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गेमिंग, ऐनिमेशन और फैशन को तो छोटे शहरों और मध्यमवर्गीय परिवारों के बच्चों के लिए बुरी आदत करार दिया जाता था।
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हालांकि, टेक्नॉलजी के बदले दौर, हर हाथ में स्मार्टफोन और अनलिमिटेड इंटरनेट ने आज कहानी बदल दी है।
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अब टैलेंट की मिसाल सिर्फ ऐकेडेमिक्स तक सीमित नहीं बल्कि दुनिया के सामने क्रिएटिविटी पेश करने में भी है।
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और इस क्रिएटिविटी, इनोवेशन के सहारे जो इकॉनमी खड़ी होती है उसे ही नाम दिया गया है ऑरेंज इकॉनमी।
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कोलंबिया के पूर्व राष्ट्रपति इवान दूके मार्केज और संस्कृति मंत्री फिलीप बुइत्रागो ने अपनी किताब The Orange Economy: The infinite opportunity में इस कॉन्सेप्ट को बताया है।
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फिल्म, वीडियो गेम, म्यूजिक जैसे रचनात्मक अभिव्यक्ति के तरीकों को उन्होंने जोड़ा है क्रिएटर्स से लेकर पॉलिसीमेकर्स तक।
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उन्होंने उदाहरण दिया है कि कैसे ऑरेंज इकॉनमी से शांति स्थापित की जा सकती है जब दो गैंग आमने-सामने आकर म्यूजिक फेस्टिवल के जरिए समझौता करते हैं।
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फेंके गए कपड़ों से जब कोई नया डिजाइन तैयार करता है तो सर्कुलर इकॉनमी में मिल जाती है ऑरेंज इकॉनमी।
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इसी तरह किसी पर्यटन स्थल के कलाकार जब कोई अनोखी कलाकृति बनाते हैं, कोई खास व्यंजन परोसते हैं तो उनकी क्रिएटिविटी इकॉनमी को रफ्तार देती है।
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इसी तरह भारत ने लक्ष्य तय किया है कॉन्टेंट क्रिएशन, गेमिंग, फिल्ममेकिंग, म्यूजिक जैसी कलाओं पर आधारित ऑरेंज इकॉनमी को साल 2029 तक $50 अरब तक पहुंचाने का।
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इसके जरिए भारत की कला, सभ्यता, संस्कृति को दुनियाभर तक पहुंचाया जाएगा और देश के टैलेंट को मंच दिया जाएगा।
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इसके लिए $1 अरब के क्रिएटिव इकॉनमी फंड का ऐलान भी किया गया है जिससे रोजगार के मौके भी पैदा किए जा सकेंगे।
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इससे कलाकारों का सम्मान भी बढ़ेगा और देश में इंटलेक्चुअल प्रॉपर्टी के बारे में लोगों की समझ भी विकसित होगी।
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