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कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के साथ सिंधु जल समझौता यानी Indus Water Treaty रोक दी है।
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यहां समझते हैं कि आखिर क्या है Indus Water Treaty, ये कब और क्यों बनी और इसे रोकने का क्या मतलब है…
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सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियां भारत और पाकिस्तान से होकर गुजरती हैं और अरब सागर में जाकर मिल जाती हैं।
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सरहद के दोनों ओर खेती और बिजली उत्पादन जैसी जरूरतों के लिए ये नदियां अहम भूमिका निभाती हैं।
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ऐसे में उनके पानी को दोनों देशों के बीच बांटने के लिए 9 साल तक बातचीत के बाद साल 1960 में सिंधु नदी संधि की गई थी।
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इस पर कराची में भारतीय प्रधानमंत्री पं.जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान ने दस्तखत किए थे।
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वर्ल्ड बैंक के सामने दोनों देशों ने तय किया कि तीन पूर्वी नदियों- रवि, ब्यास और सतलज के पानी पर भारत का कंट्रोल रहेगा और पश्चिमी नदियों- सिंधु, झेलम और चेनाब पर पाकिस्तान का।
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यानी सिंधु नदी व्यवस्था के तहत आने वाले पानी का 30% हिस्सा भारत को और 70% पाकिस्तान को मिलना तय किया गया।
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संधि के तहत सिंचाई और बिजली उत्पादन के लिए एक-दूसरे के हिस्से में आने वाली नदी का सीमित इस्तेमाल भी किया जा सकता है।
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खास बात यह है कि इस संधि की ना ही कोई आखिरी तारीख तय की गई है और ना ही इसे खत्म करने का कोई प्रावधान।
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किसी विवाद की स्थिति में दोनों देश पहले स्थायी सिंधु आयोग, उसके बाद एक न्यूट्रल एक्सपर्ट और फिर आर्बिट्रेशन फोरम के पास जा सकते हैं।
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