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भारतीय वैज्ञानिकों ने एक बड़ी गुत्थी सुलझाते हुए सटीकता के साथ पहली बार पता लगाया है कि हमारे सूरज पर कितनी हीलियम मौजूद है।
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इस स्टडी के आधार पर सूरज की बाहरी परतों की बनावट और पारदर्शिता को समझना कहीं ज्यादा आसान हो जाएगा।
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अभी तक दुनियाभर के ऐस्ट्रॉनमर्स इनडायरेक्ट स्टडीज के जरिए इसका सिर्फ अंदाजा लगा पा रहे थे लेकिन अब ये जवाब मिल गया है।
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पृथ्वी पर जीवन को आधार देने वाले सूरज की ये शक्ति उस पर हो रहे न्यूक्लियर रिऐक्शन के जरिए आती है।
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सूरज की कोर में गर्मी और दबाव के असर से हाइड्रोजन के न्यूक्लियाई आपस में जुड़ते हैं जिससे बनती है हीलियम।
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सूरज के फोटोस्फीयर, यानी वो बाहरी सतह जिसे हम ऑब्जर्व कर पाते हैं, उससे हीलियम को अभी तक स्टडी करना एक बड़ी चुनौती था।
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किसी भी एलिमेंट की स्टडी करने के लिए उससे पैदा होने वाली स्पेक्ट्रल लाइन, यानी रोशनी के उत्सर्जन या उसे सोखने का ग्राफ काम आता है।
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हीलियम एक ऐसा एलिमेंट है जिसकी स्पेक्ट्रल लाइन्स फोटोस्फीयर से ऑब्जर्व नहीं की जा सकती हैं।
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इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ ऐस्ट्रोफिजिक्स के वैज्ञानिकों ने मैग्नीशियम और कार्बन की मदद से हीलियम की सटीक मात्रा कैलकुलेट कर ली है।
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इसके लिए मैग्नीशियम और कार्बन के हाइड्रोजन के साथ बने हाइड्राइड्स का पता लगाया गया।
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क्योंकि हाइड्रोजन की मौजूदगी के हिसाब से ही हीलियम की मात्रा तय होती है, रिसर्चर्स की ये टीम उसका सटीक कैलकुलेशन कर सके।
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उनकी ये स्टडी ‘ऐस्ट्रोफिजिकल जर्नल’ में छपी है। इसे पहले के इनडायरेक्ट नतीजों के साथ वेरिफाई भी किया जा चुका है।
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