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हीरे की परख सिर्फ जौहरी को होती है, यह कहावत तो हम सभी सुन चुके हैं, लेकिन क्या है हीरे के पीछे का इतिहास? चलिए समझते हैं।
हीरे को खदानों से निकाला जाता है और फिर इसको तराशा जाता है, लेकिन जमीन के अंदर हीरा बनता कैसे है?
हीरा यानी कि डायमंड इस शब्द को ग्रीक शब्द एडमास से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है अदम्य।
प्लिनियो द एल्डर के नैचुरल हिस्ट्री में हीरे का उल्लेख है, जिन्होंने इसे सबसे कीमती पत्थर और अन्य सभी पत्थरों की तुलना में कठोर माना था।
हीरा कार्बन का शुद्धतम रूप होता है। कार्बन का यह ठोस रूप होता है, जिसमें क्रिस्टल संरचना होती है।
हीरे की कहानी की शुरुआत भारत में ही हुई थी, कृष्णा, गोदावरी और पेन्ना नदी के पास हीरे की खादान मिली थीं।
हीरे का निर्माण लाखों साल पहले पृथ्वी की पपड़ी में हुआ था और ज्वालामुखी विस्फोटों के कारण ही यह पृथ्वी की सतह पर किंबरलाइट के रूप में उभरा।
किंबरलाइट के क्षरण और टूटने से अलग-अलग आकार के, रंग के और शुद्धता वाले हीरे निकले।
करीब 3000 सालों से ज्यादा समय तक भारत इकलौता हीरे का सोर्स वाला देश था। 18वीं सदी में ब्राजील और साउथ अफ्रीका में हीरे मिले।
मौजूदा समय में भी भारत के मध्य प्रदेश के पन्ना इलाके में हीरे की खदान का ग्लोबल डायमंड बिजनेस में बड़ा अहम रोल है।
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