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3 min read | अपडेटेड April 09, 2025, 13:17 IST
सारांश
फरवरी में एमपीसी ने रेपो रेट में 0.25% की कटौती कर इसे 6.25% कर दिया था। मई, 2020 के बाद यह पहली कटौती थी और ढाई साल बाद पहली बार इसमें संशोधन किया गया था।
रेपो रेट में फिर से आ सकती है गिरावट
प्रमुख नीतिगत दर रेपो में लगातार दो बार 0.25-0.25% की कटौती करने के बाद, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने बुधवार को केंद्रीय बैंक के मौद्रिक रुख को ‘तटस्थ’ से बदलकर ‘उदार’ करते हुए आगे ब्याज दर में एक और कटौती का संकेत दिया। इससे ग्राहकों के लिए कर्ज की मासिक किस्त (ईएमआई) में और कमी आ सकती है। अगली द्विमासिक मॉनेटरी पॉलिसी की घोषणा 6 जून को की जाएगी। मॉनेटरी पॉलिसी कमिटी (एमपीसी) यानी कि मौद्रिक नीति समिति की बैठक के बाद अप्रैल की मॉनेटरी पॉलिसी की घोषणा करते हुए मल्होत्रा ने कहा कि आरबीआई के बारे में, मौद्रिक नीति का रुख भविष्य में नीतिगत दरों की इच्छित दिशा का संकेत देता है।
उन्होंने कहा, ‘आगे अगर कोई और झटका नहीं आता है, एमपीसी सिर्फ दो विकल्पों- ‘यथास्थिति’ या ‘दर में कटौती’ पर विचार करेगी।’ उन्होंने यह भी साफ किया कि इस रुख को सीधे बाजार में नकदी बढ़ाने की स्थिति से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। मॉनेटरी पॉलिसी रुख पर खुलकर बात करते हुए मल्होत्रा ने कहा कि क्रॉस-कंट्री नजरिए से, मौद्रिक नीति रुख को आमतौर पर उदार, तटस्थ या सख्त के रूप में परिभाषित किया जाता है। उन्होंने कहा कि जहां उदार रुख से मतलब आसान मौद्रिक नीति से है, जो नरम ब्याज दर के जरिए अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए तैयार की जाती है, वहीं ‘सख्ती’ से तात्पर्य संकुचनकारी मौद्रिक नीति (Contractionary Monetary Policy) से है, जिसके तहत खर्च को कंट्रोल करने और आर्थिक गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए ब्याज दरों में वृद्धि की जाती है, जिसका उद्देश्य महंगाई पर लगाम लगाना होता है।
मल्होत्रा ने कहा कि तटस्थ रुख आमतौर पर अर्थव्यवस्था की उस स्थिति से जुड़ा होता है जिसमें न तो आर्थिक गतिविधि को प्रोत्साहित करने की जरूरत होती है और न ही मांग में कटौती करके महंगाई को कंट्रोल करने की जरूरत होती है, बल्कि इसमें उभरती आर्थिक स्थितियों के आधार पर किसी भी दिशा में आगे बढ़ने के लिए लचीलापन दिया जाता है। फरवरी में एमपीसी ने रेपो रेट में 0.25% की कटौती कर इसे 6.25% कर दिया था। मई, 2020 के बाद यह पहली कटौती थी और ढाई साल बाद पहली बार इसमें संशोधन किया गया था। हालांकि, गवर्नर मल्होत्रा ने कहा कि बाजार में नकदी प्रबंधन (लिक्विडिटी मैनेजमेंट) मौद्रिक नीति के लिए अहम है, जिसमें नीति दर से संबंधित फैसले भी शामिल हैं, लेकिन यह मौद्रिक नीति ट्रांसमिशन समेत अलग-अलग उद्देश्यों के लिए आरबीआई के पास एक संचालन उपकरण (ऑपरेटिंग टूल) है। उन्होंने कहा, ‘हालांकि, नीतिगत दर में बदलाव के लिए मौद्रिक नीति के फैसलों का लिक्विडिटी मैनेजमेंट पर असर पड़ता है, क्योंकि यह नीतिगत बदलावों को लागू करने का जरिया है। कुल मिलाकर हमारा रुख नीतिगत दर मार्गदर्शन प्रदान करता है, यह लिक्विडिटी मैनेजमेंट पर कोई प्रत्यक्ष मार्गदर्शन नहीं देता है।’
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