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फिक्स्ड डिपॉजिट vs कॉर्पोरेट बॉन्ड: वरिष्ठ नागरिकों के लिए दोनों में निवेश पर क्या अंतर, यहां समझें

rajeev-kumar

4 min read | अपडेटेड March 05, 2025, 08:42 IST

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सारांश

Corporate Bonds Vs Fixed Deposits: वरिष्ठ नागरिक रिटायरमेंट के बाद सधी हुई आमदनी, जरूरी खर्च पूरे करने भर की पूंजी और अचानक से पड़ने वाली जरूरतों के लिए एक फंड तैयार रखना चाहते हैं। ऐसे में उनकी जोखिम उठाने की क्षमता से लेकर लाइफस्टाइल तक के हिसाब से कॉर्पोरेट बॉन्ड्स और फिक्स्ड डिपॉडिट के अलग-अलग फायदे और जोखिम भी हो सकते हैं।

फिक्स्ड डिपॉजिट ज्यादा सुरक्षित तो कॉर्पोरेट बॉन्ड्स देते हैं बेहतर रिटर्न। (तस्वीर: Shutterstock)

फिक्स्ड डिपॉजिट ज्यादा सुरक्षित तो कॉर्पोरेट बॉन्ड्स देते हैं बेहतर रिटर्न। (तस्वीर: Shutterstock)

वरिष्ठ नागरिकों के लिए बचत का एक भरोसेमंद जरिया मानी जाते हैं फिक्स्ड डिपॉजिट्स। इन पर रिटर्न तय होता है और जोखिम भी कम होता है जो उम्र के उस पड़ाव के मुताबिक बैठता है। हालांकि, कॉर्पोरेट बॉन्ड भी एक अच्छे विकल्प के तौर पर उभर रहे हैं जिनमें रिटर्न्स ज्यादा होने की उम्मीद रहती है।

कोई इनमें से किसे सेविंग्स के लिए चुनता है यह आगे की जरूरतों, जोखिम लेने की क्षमता जैसे फैक्टर्स पर निर्भर करता है। यहां एक नजर डालते हैं ऐसे ही कुछ फैक्टर्स पर और समझते हैं कि फिक्स्ड डिपॉडिट और कॉर्पोरेट बॉन्ड में कहां, क्या अंतर आता है।

कॉर्पोरेट बॉन्ड्स पर रिटर्न्स ज्यादा

अमूमन कॉर्पोरेट बॉन्ड्स पर रिटर्न फिक्स्ड डिपॉजिट की तुलना में ज्यादा मिलता है। ऑनलाइन बॉन्ड प्लेटफॉर्म जिराफ के को-फाउंडर सौरव घोष का कहना है कि एफडी पर अक्सर 5.5-7.4% तक ब्याज दर मिलती है, AAA और AA-रेटेड कॉर्पोरेट बॉन्ड 7.5 से 9% तक ब्याज दे सकते हैं।

एफडी में क्रेडिट, ब्याज जैसे जोखिम नहीं

भारतीय रिजर्व बैंक ₹5 लाख तक के फिक्स्ड डिपॉजिट्स पर बीमा गारंटी देता है। इसलिए इन्हें कॉर्पोरेट बॉन्ड से ज्यादा सुरक्षित माना जाता है। ऐसी कोई गारंटी कॉर्पोरेट बॉन्ड्स में नहीं होती है। ऐसे में बॉन्ड जारी करने वाले की रेटिंग पर सुरक्षा ज्यादा निर्भर करती है लेकिन बाजार से जुड़े रिस्क फिर भी रहते हैं।

एक्सपर्ट्स के मुताबिक कॉर्पोरेट बॉन्ड्स के साथ क्रेडिट, ब्याज दर, मुद्रास्फीति, पुनर्निवेश जैसे जोखिम जुड़े रहते हैं। अगर किसी कंपनी की माली हालत बिगड़ती है तो वह ब्याज या प्रिसिंपल चुकाने में असमर्थ हो सकती है। ऐसे में क्रेडिट रिस्क पैदा हो जाता है।

इंडियाबॉन्ड्स के को-फाउंडर विशाल गोयनका के मुताबिक वरिष्ठ नागरिक बॉन्ड की मच्योरिटी का समय आने वाले खर्च के हिसाब से देख रहे हों तो समय के पहले उसे तोड़ने की जरूरत नहीं होती। हालांकि, मच्योरिटी के बाद अगर घाटे पर निवेश करना पड़े तो भी जोखिम होता है। मुद्रास्फीति भी सम के साथ रियल रिटर्न को कम करती है।

उनके मुताबिक ऐसे जोखिम से बचने के लिए इन्वेस्टमेंट ग्रेड बॉन्ड (AA या उसके ऊपर) को चुनना चाहिए और अलग-अलग संस्थानों के बॉन्ड लेने चाहिए। साथ ही बाजार पर भी नजर रखनी चाहिए। सोच-समझकर चुनने से कॉर्पोरेट बॉन्ड से भी सधी हुई आमदनी हो सकती है।

जरूरत पर काम आती है एफडी

अचानक जरूरत पड़ने पर एफडी का इस्तेमाल किया जा सकता है। एफडी को कुछ पेनाल्टी देकर तोड़ा जा सकता है लेकिन कॉर्पोरेट बॉन्ड के लिए कोई सेकंडरी मार्केट में खरीददार मिले, ऐसा जरूरी नहीं है।

ब्याज दर बदलने से फायदा

एफडी में ब्याज दर पूरे टेन्योर भर तय रहती है। कॉर्पोरेट बॉन्ड्स में बाजार के आधार ब्याज दर में बढ़ोतरी हो सकती है।

कहां मिलती है टैक्स में राहत?

फिक्स्ड डिपॉजिट और गैर-सूचीबद्ध बॉन्ड्स में टैक्स से कोई राहत नहीं मिलती है। ये स्लैब रेट के आधार पर ही टैक्स के दायरे में आते हैं। हालांकि, लिस्टेड बॉन्ड के मामले में कुछ राहत मिल जाती है।

घोष के मुताबिक अगर कोई निवेशक लिस्टेड कॉर्पोरेट बॉन्ड को 12 महीने के अंदर बेचता है तो फायदे पर स्लैब रेट के तहत टैक्स पड़ता है। 12 महीने से ज्यादा के बाद बेचने पर लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन्स 12.5% टैक्स लगता है। इसमें पहले ₹1.25 लाख पर छूट मिलती है। वहीं, अगर ब्याज से आमदनी ₹5,000 से ज्यादा होती है तभी कॉर्पोरेट बॉन्ड्स पर TDS लगता है।

टेन्योर

फिक्स्ड डिपॉजिट्स के टेन्योर 7 दिन से लेकर 10 साल तक के लिए होते हैं। इससे उलट कॉर्पोरेट बॉन्ड्स अलग-अलग टेन्योर और स्ट्रक्चर्स में आते हैं। इससे निवेशक अपनी जरूरत और जोखिम उठाने की क्षमता के आधार पर बॉन्ड का चुनाव कर सकता है।

(डिस्क्लेमर: यह आर्टिकल सिर्फ जानकारी के लिए है, इसे Upstox की ओर से निवेश की सलाह नहीं समझा जाना चाहिए। सिक्यॉरिटीज मार्केट में निवेश पर मार्केट के जोखिम हो सकते हैं। निवेश के पहले अपने फाइनेंशियल अडवाइजर की सलाह जरूर लें।)

लेखकों के बारे में

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Rajeev Kumar Upstox में डेप्युटी एडिटर हैं और पर्सनल फाइनेंस की स्टोरीज कवर करते हैं। पत्रकार के तौर पर 11 साल के करियर में उन्होंने इनकम टैक्स, म्यूचुअल फंड्स, क्रेडिट कार्ड्स, बीमा, बचत और पेंशन जैसे विषयों पर 2,000 से ज्यादा आर्टिकल लिखे हैं। वह 1% क्लब, द फाइनेंशल एक्सप्रेस, जी बिजेनस और हिंदुस्तान टाइम्स में काम कर चुके हैं। अपने काम के अलावा उन्हें लोगों से उनके पर्सनल फाइनेंस के सफर के बारे में बात करना और उनके सवालों के जवाब देना पसंद है।

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