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6 min read | अपडेटेड October 25, 2024, 23:55 IST
सारांश
म्यूचुअल फंड्स स्टॉक मार्केट में इन्वेस्ट करने के बेस्ट तरीकों में से एक है, लेकिन जरूरी है कि आप इसके लिए एकदम सही फंड्स का चुनाव करें और लंबे समय के लिए इन्वेस्ट करें। म्यूचुअल फंड में इन्वेस्ट करने का अगर आप सोच रहे हैं, तो हम आपको इस आर्टिकल में सात ऐसी प्रैक्टिल टिप्स देंगे, जिससे आपका काम थोड़ा आसान हो सकता है।
म्यूचुअल फंड में इन्वेस्ट करने की सात प्रैक्टिल टिप्स
म्यूचुअल फंड कलेक्टिव इन्वेस्टमेंट स्कीम है, जहां आप और बाकी इन्वेस्टर्स मिलकर अपना पैसा लगाते हैं और बड़ा मनी पूल बनाते हैं, जिसके बाद प्रोफेशनल फंड मैनेजर्स इन पैसों को मैनेज करते हैं, जो आपकी तरफ से अहम इन्वेस्टमेंट से जुड़े फैसले लेता है। म्यूचुअल फंड्स काफी तेजी से पॉपुलर हो रहे हैं और इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि इसने इन्वेस्टमेंट को काफी सिंपल बना दिया है। म्यूचुअल फंड्स में इन्वेस्ट करने के लिए यह जरूरी नहीं है कि आपको मार्केट की बहुत डीप नॉलेज हो। अब आप चाहे म्यूचुअल फंड्स में इन्वेस्ट कर रहे हैं या इसके बारे में सोच रहे हैं, ये सात प्रैक्टिल टिप्स आपके काम आ सकते हैं और इससे आपको अपने फाइनेंशियल फैसले लेने में मदद मिल सकती है।
इन सात टिप्स के जरिए आप म्यूचुअल फंड्स इन्वेस्टमेंट से अपने रिटर्न को और बेहतर बना सकते हैं- ** अपने फाइनेंशियल गोल्स के हिसाब से इन्वेस्ट करें**
आपकी इन्वेस्टमेंट स्ट्रैटजी आपके लाइफ स्टेज के साथ चलनी चाहिए। अगर आपकी उम्र 20 से 40 के बीच में है तो आपको ग्रोथ-ओरिएंटेड फंड्स, जो इक्विटी पर फोकस करते हैं, उनके बारे में सोचना चाहिए, जो आपको ज्यादा रिटर्न दे सकते हैं और साथ ही अगर मार्केट ऊपर-नीचे होता है, तो आपको संभलने का समय भी मिल जाता है। जैसे-जैसे आप अपने रिटायरमेंट की ओर बढ़ते हैं, आपको बॉन्ड फंड्स या बैलेंस्ड फंड्स पर फोकस करना चाहिए।
केवल म्यूचुअल फंड की स्टार रेटिंग पर ना जाएं और सिर्फ इसको देखकर ही फैसला ना लें। अपनी खून-पसीने की कमाई को इन्वेस्ट करने से पहले म्यूचुअल फंड के पोर्टफोलियो को करीब से समझिए। क्या यह ऐसे सेक्टर्स में ज्यादा इन्वेस्ट करता है, जहां आपने पहले से अपना पैसा लगा रखा है? असेट्स सिलेक्ट करने के लिए फंड मैनेजर की स्ट्रैटजी पर भी सोच-विचार करें। क्या वो हाई ग्रोथ पोटेंशियल रखने वाली कंपनियों की तलाश कर रहे हैं या स्टेबल कंपनियों को ही प्रॉयरिटी पर रख रहे हैं? फंड के अप्रोच को आपकी इन्वेस्टमेंट स्ट्रैटजी को बढ़ाना चाहिए ना कि केवल आपके मौजूदा पोर्टफोलियो को ही दोहराते रहना चाहिए।
सिस्टमैटिक इंन्वेस्टमेंट प्लान (एसआईपी) शुरू करें, एसआईपीए में आप एक निश्चित रकम नियमित अंतराल पर इन्वेस्ट कर सकते हैं और जरूरी नहीं है कि एसआईपी शुरू करने के लिए आप बहुत ज्यादा रुपये से शुरुआत करें। एसआईपी की सबसे अच्छी बात है कि इसे आप 100 रुपये से भी शुरू कर सकते हैं और अगर आप ऑटो डेबिट ऑप्शन ले लेंगे, तो नियमित अंतराल पर वो पैसे आपके अकाउंट से खुद ही कट जाएंगे, एसआईपी रुपये-कॉस्ट एवरजिंग का फायदा उठाता है, इसलिए जब किसी फंड का रेट गिरता है, तो आप ज्यादा यूनिट उठा पाते हैं, इससे आपके पैसे बढ़ते जाते हैं और आपको इसके लिए बहुत एक्स्ट्रा कुछ करने की जरूरत भी नहीं पड़ती है। इसको उदाहरण के साथ समझते हैं मान लीजिए आप किसी इक्विटी फंड में हर महीने 15,000 रुपये लगा रहे हैं और यूनिट की लागत 100 रुपये है, तो आपको 150 यूनिट मिलेंगी, अगर अगले महीने इस यूनिट की कीमत 100 से 75 रुपये हो जाती है, तो आपको 15,000 रुपये में 200 यूनिट मिल जाएंगी, समय के साथ-साथ यह स्ट्रैटजी आपकी होल्डिंग्स की एवरेज कॉस्ट को कम कर सकती है। एसआईपी इन्वेस्टमेंट के इमोशनल पहलू को भी दूर करता है, जिससे आपको मार्केट में उतार-चढ़ाव के दौरान जल्दबाजी में लिए गए फैसलों से बचने और मार्केट के उतार-चढ़ाव के दौरान एक बैलेंस्ड इन्वेस्टमेंट बनाए रखने में मदद मिलती है।
आपका पोर्टफोलियो डावर्सिफाइड बनाने के लिए यह देखना जरूरी होता है कि आपके म्यूचुअल फंड्स में अलग-अलग होल्डिंग्स हो। जैसे कि अगर आपने दो अलग-अलग म्यूचुअल फंड में इन्वेस्ट किया हो और दोनों के एसेट्स टेक्नॉलजी सेक्टर के हों, तो अगर टेक सेक्टर में गिरावट आएगी, तो इससे आपके दोनों फंड्स पर इसका नेगेटिव इम्पैक्ट पड़ेगा। इससे बचने के लिए ही आपको यह देखना जरूरी है कि आपने म्यूचुअल फंड में जो पैसे इन्वेस्ट किए हैं वो अलग-अलग सेक्टर्स के हों, अगर ऐसे में किसी एक सेक्टर में गिरावट आती है, तो बाकी के म्यूचुअल फंड आपके इन्वेस्टमेंट को बैलेंस करते हैं।
आप जितना पैसा भी इन्वेस्ट कर रहे हैं अगर आपको उसकी टैक्स इम्प्लिकेशन्स के बारे में पता होगा मतलब आपकी इन्वेस्टमेंट में हुए प्रॉफिट का कितना परसेंट टैक्स कटेगा, तो इससे आपको अपना बेहतर रिटर्न पता चलेगा। हर तरह का म्यूचुअल फंड अपने खुद के टैक्स नियमों के साथ आता है। जैसे कि भारत में, इक्विटी फंड से होने वाले लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन पर डेट फंड की तुलना में कम टैक्स लगता है। अगर आप हाई टैक्स ब्रैकेट में हैं और एक ऐसे फंड के बारे में सोच रहे हैं, जो ज्यादा इंटरेस्ट इनकम मिलती है, तो इससे आपकी टैक्स देनदारी बढ़ सकती है। ऐसे में जरूरी है कि आप टैक्स एडवाइजर से सलाह लें और अलग-अलग म्यूचुअल फंड्स के टैक्स इम्प्लिकेशन्स को अच्छी तरह समझें।
**रियल रिटर्न पर करें फोकस ** जब आप किसी म्यूचुअल फंड की परफॉर्मेंस के बारे में सोचें तो जरूरी है कि आपको रियल रेट ऑफ इंटरेस्ट पर विचार करना चाहिए। एक फंड जो इन्फ्लेशन 3 परसेंट होने पर रिटर्न 8 परसेंट देता हो, उसका रियल रिटर्न 5 परसेंट है। तो आपके रिटर्न को देखने का यह बेहतर तरीका है। अगर आप किसी फंड को लेकर प्रिडिक्ट कर रहे हैं कि वो आपको 4 परसेंट रिटर्न देगा, लेकिन इन्फ्लेशन 2 परसेंट के आस-पास है, तो ऐसे में आपका रियल रिटर्न केवल 2 परसेंट होगा। फिर ऐसे में आप इसे किसी ऐसे एग्रेसिव फंड से कम्पेयर करें, जो आपको इस इन्फ्लेशन में 7 परसेंट रिटर्न दे, ऐसे में आपका रियल रिटर्न 5 परसेंट होगा।
**लॉन्ग-टर्म इन्वेस्टमेंट को लेकर करें दिमाग मजबूत ** म्यूचुअल फंड में इन्वेस्ट करने के लिए लॉन्ग-टर्म माइंडसेट बहुत जरूरी है। मार्केट अगर गिरता है, तो इससे आप परेशान हो सकते हैं, लेकिन यह बेचने का सबसे खराब समय होता है। अगर आप लॉन्ग-टर्म इन्वेस्टमेंट करते हैं, तो इससे आपको मार्केट को सही से समझने का मौका मिलता है और आप जल्दबाजी में गलत फैसले नहीं लेते हैं। मान लीजिए आपने एक ऐसे फंड में इन्वेस्ट किया है, जो मार्केट में अचानक गिरावट के चलते 10 परसेंट गिर जाता है। अब अगर आपकी इन्वेस्टमेंट 10 साल या उससे अधिक की है, तो ऐसे में यह गिरावट आपके लिए छोटा सा झटका होगा और आप इससे समय के साथ बेहतर तरीके से उबर जाएंगे। डर के फंड बेचने से आपको नुकसान हो सकता है और लॉन्ग टर्म में उसे मार्केट में रहने देने से मार्केट में सुधार होने के बाद आपको पहले से ज्यादा फायदा भी पहुंच सकता है।
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