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एक देश में रहते हुए दूसरे देश के व्यापार से लेकर सिक्यॉरिटीज मार्केट तक में निवेश करने के कई मौके होते हैं।
यहां समझते हैं 5 अलग-अलग तरीके जिनसे एक देश में रहने वाले लोग दूसरे देश में निवेश कर सकते हैं…
जब भारतीय कंपनी के शेयर्स में विदेशी निवेशक का हिस्सा 10% से ज्यादा हो जाता है तो उसे फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट कहते हैं।
आमतौर पर ये निवेश लंबे वक्त तक रहता है और इस दौरान निवेशक का कंट्रोल भी ज्यादा रहता है।
फॉरेन पोर्टफोलियो इन्वेस्टमेंट, जहां कोई विदेशी संस्था/कंपनी/व्यक्ति किसी भारतीय इकाई के 10% तक शेयर्स खरीद लेती है।
ये आमतौर पर शॉर्ट-टर्म निवेश होता है और फोकस स्टॉक, बॉन्ड जैसे फाइनेंशियल ऐसेट्स पर रहता है।
फॉरेन इंस्टिट्यूशनल इन्वेस्टमेंट, FPI का एक प्रकार होते हैं। यहां एक संस्थान या समूह, ना कि व्यक्ति, किसी खास प्रॉडक्ट, जैसे स्टॉक, म्यूचुअल फंड में निवेश करता है।
कंपनी के मैनेजमेंट से जुड़े फैसलों में FPI का कोई दखल नहीं होता जबकि शेयर्स के आधार पर FII का हो सकता है।
रजिस्टर्ड FPIs विदेशी निवेशकों को ऑफशोर डेरिवेटिव इंस्ट्रुमेंट्स भी जारी कर सकते हैं जिन्हें P-Notes कहते हैं।
इनके जरिए ये निवेशक बिना भारतीय स्टॉक मार्केट में खुद को रजिस्टर किए इसका हिस्सा बन सकते हैं।
ये भी FPI की एक कैटिगिरी है और इसमें ऐसे विदेशी नागरिक या समूह शामिल होते हैं जो फाइनेंशियल ऐक्शन टास्क फोर्स के सदस्य देशों या उससे जुड़े देशों से आते हों।
FPI से जुड़े निवेश पर सिक्यॉरिटीज ऐंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (SEBI) नजर रखता है जबकि FDI को SEBI और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) दोनों रेग्युलेट करते हैं।
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