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4 min read | अपडेटेड December 12, 2025, 15:41 IST
सारांश
FII Selling: 2025 के 12 में से 8 महीनों में FII लगातार नेट सेलर रहे। जनवरी सबसे खराब महीना रहा, जब FIIs ने ₹78,027 करोड़ के शेयर बेचे। वहीं मई सबसे बेहतर रहा, क्योंकि उस महीने उन्होंने करीब ₹19,860 करोड़ की खरीदारी की थी। लगातार बिकवाली का असर विदेशी निवेशकों की हिस्सेदारी पर साफ दिखा।

विदेशी निवेशकों (FII) ने अक्टूबर 2024 से भारतीय शेयर बाजार में तेजी से बिकवाली शुरू कर दी थी।
2025 के 12 में से 8 महीनों में FII लगातार नेट सेलर रहे। जनवरी सबसे खराब महीना रहा, जब FIIs ने ₹78,027 करोड़ के शेयर बेचे। वहीं मई सबसे बेहतर रहा, क्योंकि उस महीने उन्होंने करीब ₹19,860 करोड़ की खरीदारी की थी।
लगातार बिकवाली का असर विदेशी निवेशकों की हिस्सेदारी पर साफ दिखा। NSE की रिपोर्ट के अनुसार भारतीय शेयर बाजार में FPI की हिस्सेदारी गिरकर 16.9% पर आ गई, जो पिछले 15 सालों में सबसे कम है। NIFTY50 और NIFTY500 में भी विदेशी निवेशकों की हिस्सेदारी 13 साल के निचले स्तर पर आ गई है।
| वर्ष | एफपीआई निवेश (₹ करोड़ में) |
|---|---|
| 2002 | 3,634 |
| 2003 | 30,457 |
| 2004 | 38,969 |
| 2005 | 47,180 |
| 2006 | 36,544 |
| 2007 | 71,480 |
| 2008 | -52,987 |
| 2009 | 83,431 |
| 2010 | 1,33,260 |
| 2011 | -2,714 |
| 2012 | 1,28,361 |
| 2013 | 1,13,134 |
| 2014 | 97,059 |
| 2015 | 17,801 |
| 2016 | 20,563 |
| 2017 | 51,252 |
| 2018 | -33,014 |
| 2019 | 1,01,122 |
| 2020 | 1,70,262 |
| 2021 | 25,752 |
| 2022 | -1,21,439 |
| 2023 | 1,71,107 |
| 2024 | 427 |
| 2025* | -1,59,779 |
इसके उलट, घरेलू निवेशकों ने विदेशी बिकवाली को लगातार संभाला। म्यूचुअल फंड्स की हिस्सेदारी बढ़कर 10.9% के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है। SIP के जरिए लगातार पैसा आ रहा है, जिसकी वजह से यह शेयर बढ़ा है। DIIs ने लगातार चार तिमाहियों से विदेशी निवेशकों को पछाड़ा है, जो 2003 के बाद पहली बार हुआ है।
रिटेल निवेशकों (यानी आम लोगों) की हिस्सेदारी 9.6% पर स्थिर रही। लेकिन जब इस हिस्सेदारी में म्यूचुअल फंड्स की हिस्सेदारी जोड़ दी जाए, तो घरेलू व्यक्तियों की कुल हिस्सेदारी 18.75% हो जाती है, जो पिछले 22 साल में सबसे ज्यादा है। हालांकि Q2FY26 में घरेलू निवेशकों की इक्विटी वैल्यू लगभग ₹2.6 लाख करोड़ घटी, लेकिन अप्रैल 2020 से अब तक कुल मुनाफा अभी भी बहुत बड़ा है। लगभग ₹53 लाख करोड़ के बाद आबादी की कुल इक्विटी संपत्ति ₹84 लाख करोड़ पर है।
उद्योग आधारित पोर्टफोलियो में देखा जाए तो विदेशी निवेशक अभी भी बैंकों और वित्तीय सेवाओं में ज्यादा निवेशित हैं। वे कम्युनिकेशन सर्विसेज को लेकर थोड़ा पॉजिटिव हुए हैं, लेकिन FMCG, ऊर्जा, धातु और इंडस्ट्रियल सेक्टर को लेकर सावधान बने हुए हैं। म्यूचुअल फंड्स बड़े वित्तीय शेयरों और मिड-कैप कंज्यूमर डिस्क्रेशनरी सेक्टर में ओवरवेट हैं, लेकिन FMCG और कमोडिटी सेक्टरों पर उनका नकारात्मक रुख कायम है।
HSBC का कहना है कि भारतीय बाजार 2026 में फिर से गति पकड़ सकता है। उनकी रिपोर्ट कहती है कि वैल्यूएशन सामान्य स्तर पर आ गए हैं, और अब विदेशी निवेशकों के लिए भारत फिर से आकर्षक बन रहा है। पिछले एक साल में भारतीय बाजार का पैसा एशिया के AI बूम (कोरिया, ताइवान) में गया, इसीलिए भारत “फंडिंग मार्केट” बना रहा।
सितंबर 2024 से नवंबर 2025 तक विदेशी निवेशकों ने करीब $28 बिलियन निकाले, जिससे भारत का विदेशी स्वामित्व 14 साल के निचले स्तर पर चला गया। वैश्विक उभरते बाजारों में अब भारत दूसरी सबसे बड़ी ‘अंडरवेट’ स्थिति में है। मगर HSBC कहता है कि अब भारत में फिर से विदेशी निवेश बढ़ने की काफी गुंजाइश है, क्योंकि अभी सिर्फ एक-चौथाई वैश्विक फंड ही भारत को ओवरवेट मानते हैं। HSBC का मानना है कि घरेलू निवेशकों ने बाजार को स्थिर रखा है, लेकिन अगले बड़े बुल रन के लिए विदेशी निवेश की वापसी बहुत अहम होगी।
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