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3 min read | अपडेटेड December 09, 2025, 10:36 IST
सारांश
आरबीआई ने ब्याज दर डेरिवेटिव बाजार के विकास को देखते हुए नए नियम लागू किए हैं। जून 2025 में ड्राफ्ट पर मिली राय के बाद इसे अंतिम रूप दिया गया है। इससे लोन की बाहरी बेंचमार्किंग और बाजार आधारित वित्त को मजबूती मिलेगी। यह कदम वित्तीय स्थिरता और पारदर्शिता के लिए उठाया गया है।

भारतीय रिजर्व बैंक ने रुपये के ब्याज दर डेरिवेटिव (IRD) के लिए 2025 का नया मास्टर डायरेक्शन जारी कर दिया है।
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने देश के वित्तीय ढांचे को मजबूत करने की दिशा में एक और अहम कदम उठाया है। केंद्रीय बैंक ने रुपये के ब्याज दर डेरिवेटिव यानी आईआरडी (IRD) के लिए मास्टर डायरेक्शन 2025 जारी कर दिया है। आरबीआई का यह कदम बाजार में हो रहे बदलावों और नई जरूरतों को ध्यान में रखते हुए उठाया गया है। इस नए निर्देश का मकसद ब्याज दरों से जुड़े उत्पादों के बाजार में पारदर्शिता लाना और जोखिम प्रबंधन की जरूरतों को पूरा करना है। यह नया फ्रेमवर्क अब पुराने नियमों की जगह लेगा और वित्तीय संस्थानों को काम करने का एक बेहतर माहौल देगा।
रिजर्व बैंक ने इससे पहले जून 2019 में रुपये के ब्याज दर डेरिवेटिव के लिए नियामक ढांचा जारी किया था। तब से लेकर अब तक बाजार में काफी कुछ बदल चुका है। पिछले कुछ सालों में आईआरडी उत्पादों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है और इसमें घरेलू और विदेशी दोनों तरह के निवेशकों की भागीदारी भी बढ़ी है। इसके अलावा आज के समय में वित्तीय सिस्टम बाजार आधारित वित्त पर ज्यादा निर्भर हो गया है। साथ ही लोन की ब्याज दरों को बाहरी बेंचमार्क से जोड़ा जा रहा है। इन सभी बदलावों के कारण एक विकसित और आधुनिक आईआरडी बाजार की जरूरत महसूस की जा रही थी, जिसे पूरा करने के लिए ही यह नया मास्टर डायरेक्शन लाया गया है।
आरबीआई ने इन नियमों को अंतिम रूप देने से पहले एक पारदर्शी प्रक्रिया अपनाई थी। बैंक ने 16 जून 2025 को इन निर्देशों का एक ड्राफ्ट जारी किया था और बाजार के जानकारों और हितधारकों से इस पर राय मांगी थी। ड्राफ्ट पर मिले सुझावों और फीडबैक का गहराई से अध्ययन किया गया। इसके बाद जरूरी बदलावों को शामिल करते हुए अब फाइनल मास्टर डायरेक्शन जारी किया गया है। आरबीआई ने प्राप्त हुए मुख्य सुझावों और उन पर की गई कार्रवाई की जानकारी भी एक अलग बयान में दी है।
इस नए मास्टर डायरेक्शन का सबसे बड़ा लक्ष्य बाजार में पारदर्शिता को बढावा देना है। ब्याज दर डेरिवेटिव एक ऐसा वित्तीय उपकरण है जिसका इस्तेमाल ब्याज दरों में होने वाले उतार-चढाव से बचने या जोखिम कम करने के लिए किया जाता है। नए नियमों के जरिए आरबीआई यह सुनिश्चित करना चाहता है कि व्यापक वित्तीय प्रणाली की जोखिम प्रबंधन जरूरतें पूरी हो सकें। इससे न केवल बैंकों और वित्तीय संस्थानों को मदद मिलेगी, बल्कि लोन लेने वाले ग्राहकों के लिए भी ब्याज दरों का ढांचा ज्यादा स्पष्ट और पारदर्शी हो सकेगा।
वित्तीय विशेषज्ञों का मानना है कि आरबीआई का यह कदम भारतीय डेरिवेटिव बाजार को वैश्विक मानकों के करीब ले जाएगा। नए उत्पादों की उपलब्धता और स्पष्ट नियमों से बाजार में लिक्विडिटी बढ़ेगी। जब नियम साफ होते हैं तो विदेशी निवेशक भी बाजार में पैसा लगाने के लिए प्रोत्साहित होते हैं। आरबीआई ने साफ किया है कि यह अपडेटेड फ्रेमवर्क आईआरडी बाजार में हो रहे विकास के अनुरूप है और यह भविष्य की चुनौतियों से निपटने में वित्तीय सिस्टम की मदद करेगा।
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