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Budget 2026: कमाई अठन्नी और खर्चा रुपैया, फिर भी देश की इकोनॉमी के लिए क्यों अच्छा माना जाता है 'घाटे का बजट'?

विकास तिवारी

3 min read | अपडेटेड December 02, 2025, 15:35 IST

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सारांश

Budget 2026: बजट 2026 आने वाला है और अक्सर हम 'घाटे के बजट' की चर्चा सुनते हैं। विकासशील देशों के लिए घाटे का बजट अच्छा माना जाता है क्योंकि इससे विकास को रफ्तार मिलती है। आम बजट में कमाई और खर्च बराबर होते हैं, जबकि डेफिसिट बजट में सरकार कर्ज लेकर काम चलाती है।

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भारत जैसे विकासशील देश में अक्सर घाटे का बजट ही पेश किया जाता है।

देश में बजट 2026-27 की तैयारी जोर-शोर से चल रही है। 1 फरवरी को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण संसद में अपना बही-खाता पेश करेंगी। बजट के दौरान आपने अक्सर टीवी पर जानकारों को 'डेफिसिट बजट' यानी 'घाटे के बजट' पर बात करते सुना होगा। सुनने में 'घाटा' शब्द थोड़ा नकारात्मक लगता है, लेकिन अर्थशास्त्र की दुनिया में इसका मतलब और महत्व बिल्कुल अलग है। आइए आसान भाषा में समझते हैं कि आखिर यह डेफिसिट बजट क्या बला है, यह सामान्य बजट से कैसे अलग है और भारत के इतिहास में इसे लेकर क्या बदलाव हुए हैं।

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क्या होता है डेफिसिट बजट?

आसान भाषा में समझें तो जब सरकार की कुल कमाई (रेवेन्यू) कम हो और उसका कुल खर्चा (एक्सपेंडिचर) ज्यादा हो, तो ऐसी स्थिति को 'डेफिसिट बजट' कहा जाता है। उदाहरण के लिए, अगर सरकार की कमाई 100 रुपये है और वह देश के विकास पर 110 रुपये खर्च कर रही है, तो यह 10 रुपये का घाटा है। भारत जैसे विकासशील देशों के लिए यह बजट बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। सरकार जानबूझकर अपनी कमाई से ज्यादा खर्च करती है ताकि देश में सड़कें, पुल, स्कूल और अस्पताल बनाए जा सकें। इस अतिरिक्त खर्च से बाजार में मांग बढती है और रोजगार के नए अवसर पैदा होते हैं। इस एक्स्ट्रा खर्चे की भरपाई सरकार बाजार से कर्ज लेकर करती है।

नॉर्मल बजट से कितना अलग है?

बजट मुख्य रूप से तीन तरह के होते हैं।

संतुलित बजट (Balanced Budget): इसे ही आप 'नॉर्मल बजट' कह सकते हैं। इसमें सरकार उतना ही खर्च करती है जितनी उसकी कमाई होती है। यानी आमदनी और खर्चा बराबर। यह सुनने में अच्छा लगता है लेकिन विकास की रफ्तार इससे धीमी हो सकती है।
सरप्लस बजट (Surplus Budget): इसमें सरकार की कमाई ज्यादा होती है और खर्च कम। यह मंदी के समय अर्थव्यवस्था के लिए नुकसानदायक हो सकता है।
डेफिसिट बजट (Deficit Budget): इसमें खर्च कमाई से ज्यादा होता है। भारत में आजादी के बाद से लगभग हर बार डेफिसिट बजट ही पेश किया जाता है, क्योंकि हमें विकास के लिए भारी निवेश की जरूरत है।

आखिरी बार किसने बदला था नियम?

यहां एक बहुत ही दिलचस्प तकनीकी पेंच है। आज हम जिसे आम बोलचाल में 'घाटा' कहते हैं, वह असल में 'राजकोषीय घाटा' (Fiscal Deficit) है। लेकिन एक समय था जब भारत में 'बजट डेफिसिट' नाम की एक अलग मद हुआ करती थी। 1997 से पहले अगर सरकार का खर्च कमाई से ज्यादा होता था, तो सरकार उस कमी को पूरा करने के लिए नए नोट छापती थी या आरबीआई से सीधे पैसा ले लेती थी। इससे देश में महंगाई बहुत बढ़ जाती थी।

साल 1997-98 के बजट में तत्कालीन वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने इस पुरानी 'बजट डेफिसिट' की प्रथा को आधिकारिक रूप से खत्म कर दिया था। उन्होंने तय किया कि सरकार अब नोट छापकर नहीं, बल्कि बाजार से कर्ज लेकर घाटे की भरपाई करेगी। तब से सरकार बजट में 'फिस्कल डेफिसिट' का आंकड़ा देती है। इसलिए तकनीकी रूप से पी. चिदंबरम वह आखिरी वित्त मंत्री थे जिन्होंने पुराने जमाने वाले 'बजट डेफिसिट' को विदा किया था। आज भी निर्मला सीतारमण जो बजट पेश करती हैं, वह खर्चे के लिहाज से घाटे का ही होता है, लेकिन उसे अब हम राजकोषीय घाटे के रूप में जानते हैं।

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लेखकों के बारे में

विकास तिवारी
Vikash Tiwary is a finance journalist with 6+ years of newsroom experience. He is currently growing Upstox Hindi, crafting data-driven stories on stocks, personal finance, mutual funds, and global markets, while exploring how AI can simplify finance. His work spans Zee Business, TV9 Bharatvarsh, ABP News, India TV, and Inshorts. He also holds NISM certification.

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