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पेट्रोल-डीजल के दामों में उतार-चढ़ाव आम आदमी की जेब पर सीधा असर डालता है।
अमूमन ये अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल के भावों में बदलाव से प्रभावित होते हैं। एक्सचेंज रेट और कंपनियों के खर्च जैसी चीजों का असर भी इनके दाम पर पड़ता है।
कच्चे तेल को रिफाइन करने पर पहले पेट्रोल और फिर डीजल बनकर निकलता है। भारत अपनी जरूरत का करीब 70% तेल आयात करता है।
यहां समझते हैं कि ऐसे कौन से 5 बड़े कारण हैं जिनके असर से देश में पेट्रोल-डीजल के दाम बदल सकते हैं…
दो देशों के बीच तनाव से व्यापार की सप्लाई चेन में खलल पड़ता है। एक-दूसरे के लिए अपने बाजार बंद करने से उत्पादों की डिमांड और उनकी आपूर्ती के लिए ईंधन की जरूरत कम होती है।
इकॉनमिक ऐक्टिविटी धीमी पड़ने से तेल की मांग में कमी आती है। मंदी के दौरान लोग खर्च कम करते हैं और कंपनियां उत्पादन भी कम करती हैं जिससे तेल के भाव नीचे आते हैं।
गोल्डमैन सैक्स, जेपी मॉर्गन के मुताबिक OPEC+ देशों में बढ़े तेल उत्पादन और ज्यादा सप्लाई ने आपूर्ति को मांग से ज्यादा कर दिया है जिससे कच्चा तेल सस्ता हो सकता है।
ट्रेड वॉर, मंदी का डर लोगों और देशों के बीच तेल की मांग को कम करता है। डिमांड कम होने से उत्पादकों को कम दाम पर अपना सरप्लस तेल बेचने की मजबूरी होती है।
आम आदमी के लिए पेट्रोल-डीजल की कीमत में बदलाव पर सरकार की ओर से लगाए गए टैक्स, ड्यूटी और तेल कंपनियों के फैसले जैसे फैक्टर्स का ज्यादा असर होता है।
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